विधि आयोग ने जारी की अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट , लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने पर जोर

विधि आयोग अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा है कि लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के एक साथ चुनाव होना चाहिए। आयोग ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कई मुद्दे उठाए है। विधि आयोग ने केन्द्र को अंतिम सिफारिशें करने से पहले सभी मुद्दों पर सभी हितधारकों से गहन विचार विमर्श की मांग की है।

आयोग ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि देश की राजनीति पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालने वाले किसी भी बड़े निर्णय से पहले सभी हितधारकों को विश्वास में लेना चाहिए। किसी भी कानून को लागू करने के लिए सरकार को सामान्य रूप से जनता और राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए।

आयोग एक साथ चुनाव आयोजित करने की सिफारिश करते हुए उसके कई लाभ बताए। आयोग ने अपने सुझावों में कहा है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से  

- सार्वजनिक पैसे की  बचत होगी
- प्रशासनिक तंत्र और सुरक्षा बलों पर दबाव कम होगा
- समय पर सरकारी नीतियों के बेहतर कार्यान्वयन सुनिश्चित करना और देश की प्रशासनिक तंत्र को लगातार चुनाव में लगे रहने की बजय विकास गतिविधियों में काम करने मदद मिलेगी

21 वें विधि आयोग ने राजनीतिक दलों की 3 खास आपत्तियों पर अपनी  टिप्पणी की है जिसमें लोकतंत्र पर आधात, संविधान की मूल संरचना  और संघीय ढ़ाचे पर प्रहार को सिरे से खारिज किया है।

21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 तक ही था इसलिए अब इस मसले पर अंतिम रिपोर्ट को अगला आयोग तैयार करेगा।आयोग ने एक साथ चुनाव कराने के मसले पर ड्राफ्ट रिपोर्ट  जारी करने से पहले देश के राष्ट्रीय और राज्यीय मान्यता प्राप्त दलों के साथ मंत्रणा की थी।

लॉ कमीशन का कहना है कि मौजूदा समय में देश को सभी धर्मों के लिए एकसमान यूनिफॉर्म सिविल कोड की ज़रूरत नहीं है। हालांकि, विधि आयोग ने पर्सनल कानूनों में सुधार को ज़रुरी बताया है। यूनिफॉर्म सिविल कोड, और पर्सनल लॉ को लेकर तैयार किए गए अपने कंसल्टेशन पेपर में आयोग ने कहा है कि धार्मिक परम्पराओं और मौलिक अधिकारों के बीच सामंजस्य बनाए जाने की ज़रूरत है।

तीन तलाक को लेकर विधि आयोग ने किसी खास कानून पर कोई राय नहीं दी है। कमीशन के मुताबिक एकतरफा तलाक़ की स्थिति में घरेलू हिंसा रोकथाम कानून और IPC 498 के तहत सजा मिलनी चाहिए। आयोग ने कहा है कि तीन तलाक़ को सुप्रीम कोर्ट खत्म कर चुका है। ट्रिपल तलाक़ न तो धार्मिक परम्पराओं और न ही मूल अधिकारों से जुड़ा है।  रिपोर्ट में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मॉडल निकाहनामा पर विचार करने के लिए कहा गया है।

आयोग ने स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में बदलाव और  शादी के लिए लड़के और लड़की न्यूनतम समान किए जाने की बात कही है।



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