राजनीति के अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण पर चिंता जताते हुए कहा है कि राजनीति का अपराधीकरण और भ्रष्टाचार लोकतंत्र की नींव को खोखला कर रहे है। लेकिन साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है जिनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल हो गया है। शीर्ष अदालत ने विधायिका से कहा है कि वह राजनीति से अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए कानून बनाने पर विचार करे। अदालत ने राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने उम्मीदवारों के संबंध में सभी सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। पीठ ने कहा  कि चुनाव लड़ने से पहले प्रत्येक उम्मीदवार को अपना आपराधिक रिकॉर्ड निर्वाचन आयोग के समक्ष घोषित करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के देशभर की अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को भी खारिज कर दिया। 

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में राजनीति के अपराधीकरण को चिंता का विषय बताते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि भ्रष्टाचार और राजनीति का अपराधीकरण भारतीय लोकतंत्र की नींव को खोखला कर रहा है। संसद को इस महामारी से निपटने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।  सुप्रीम कोर्ट ने विधायिका से कहा कि वह राजनीति से अपराधीकरण को समाप्त करने के लिए कानून बनाने पर विचार करे।

आपराधिक मामलों में मुकदमों का सामना कर रहे जनप्रतिनिधियों को आरोप तय होने के स्तर पर चुनाव लड़ने के अधिकार से प्रतिबंधित करना चाहिए या नहीं इस सवाल को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह बात कही। संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला देते हुए सभी राजनीतिक दलों से कहा कि वे अपने उम्मीदवारों के संबंध में सभी सूचनाएं अपनी वेबसाइट पर अपलोड करें। पीठ ने कहा  कि चुनाव लड़ने से पहले प्रत्येक उम्मीदवार को अपना आपराधिक रिकॉर्ड निर्वाचन आयोग के समक्ष घोषित करना होगा।  उम्मीदवारों को निर्वाचन आयोग को एक फॉर्म भर कर देना होगा जिसमें उनका आपराधिक रिकॉर्ड और आपराधिक इतिहास ''बड़े बड़े अक्षरों'' में दर्ज होगा। पीठ ने कहा कि नागरिकों को अपने उम्मीदवारों का रिकॉर्ड जानने का पूरा अधिकार है। संविधान पीठ ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों से जुड़े उम्मीदवारों के रिकॉर्ड का प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से गहन प्रचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि गंभीर आपराधिक मुकदमों का सामना कर रहे उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने के लिए वह विधायिका के कार्य क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती है । हालांकि, पीठ ने कहा कि देश को ऐसे कानून का बेसब्री से इंतजार है और विधायिका को इस समस्या से निपटने के लिए कानून बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि किसी मामले में जानकारी प्राप्त होने के बाद उस पर फैसला लेना लोकतंत्र की नींव है।  

गौरतलब है कि मौजूदा कानून के तहत किसी आपराधिक मामले में दोषी साबित  होने के बाद ही जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि या उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है लेकिन कई याचिकाओं में मांग की गयी थी कि 5 साल से ज्यादा की सजा वाली धारा में आरोप तय होने पर चुनाव लडने से रोका जाए । इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों के देशभर की अदालतों में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि कानून अदालतों में उनके प्रैक्टिस करने पर कोई पाबंदी नहीं लगाता है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर और न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि वकील के सांसद या विधायक बनने पर उनके प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने का आदेश नहीं दिया जा सकता क्योंकि बार काउंसिल ऑफ इंडिया जनप्रतिनिधियों के वकीलों के तौर पर प्रैक्टिस करने पर रोक नहीं लगाता है।  याचिका में पेशे से वकील जनप्रतिनिधियों (सांसद, विधायकों और पार्षदों) के कार्यकाल के दौरान अदालत में प्रैक्टिस करने पर रोक लगाने की मांग की गई थी ।  

याचिका में कहा गया था कि कोई भी जन सेवक वकील के तौर पर प्रैक्टिस नहीं कर सकता है जबकि कई जन प्रतिनिधि विभिन्न अदालतों में प्रैक्टिस कर रहे हैं और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। लेकिन शीर्ष अदालत ने ये दलील नहीं मानी ।



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