सेल्युलर जेल स्थित शहीद स्तंभ पर प्रधानमंत्री ने शहीदों को दी श्रद्धांजलि

उन्होने वीर सावरकर की उस काल कोठरी का निरीक्षण किया जहां उन्हे 10 साल तक की सजा काटनी पड़ी। ज़ुल्म और अत्याचार की पराकाष्ठा को सहकर वीर सावरकर अडिग रहे। अंग्रेजों की सभी यातनाओं का मुक़ाबला उन्होने भारत माता की आज़ादी का सपना संजोए बड़ी आसानी से किया। सावरकर की हिम्मत और साहस के आगे इस वीराने के अत्याचारों ने भी घुटने टेक दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसे ही अडिग भारत माता के महान सपूत वीर सावरकर को राष्ट्र की ओर से नमन किया। विनायक दामोदर सावरकर ने 1904 में अभिनव भारत नाम से क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की थी। नासिक ज़िले के कलेक्टर की हत्या षडयंत्र के लिए उन्हे 7 अप्रैल 1911 से 21 जुलाई 1921 तक वीर सावरकर को यहां कैद रखा गया। कैद से मुक्ति के बाद सावरकर आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेते रहे। उनकी मृत्यु 26 फरवरी 1966 में हुई। 

प्रधानमंत्री ने सेल्युलर जेल में स्वातंत्रवीर सावरकर को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के बाद वॉच टावर,सेंट्रल टावर का निरीक्षण किया। 1969 में सेल्युलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक में तब्दील किया गया। ये हमारे अमर बलिदानियों के संघर्ष,त्याग का अब प्रतीक है। स्वतंत्रता के लिए आज़ादी के दीवानों ने कितनी ही मुश्किलों का सामना किया,कितनी यातनाऐं सही अपना वर्तमान,भविष्य सब कुछ त्याग कर दिया सिर्फ इस शस्य श्यामला धरती के लिए। यहां कोल्हू में बैलों की जगह भारतीय आज़ादी के दीवानों का इस्तेमाल किया जाता था। नारियल का तेल निकलवाने से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों से दलदली भूमि पर काम करवाया जाता था। काम पूरा नहीं करने पर या सजा के रूप में कोडे और बेंतों से पिटाई की जाती थी। पोर्ट ब्लेयर यह जेल मानव द्वारा मानव को ही दी जाने वाली क्रूरतम यातनाओं का घर थी। यहां स्थित उस फांसीघर को भी प्रधानमंत्री ने देखा जहां देश के सपूतों ने अपना सर्वोच्य बलिदान कर दिया और हंसते-हंसते सूली पर चढ़ गए। 

सेल्युलर जेल का निर्माण भले ही 20 वीं सदी में पूरा हुआ हो लेकिन भारत के मुख्य भू-भाग से यहां स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे मतवालों को 1857 की पहली क्रांन्ति के बाद ही भेजा जाने लगा था। इस जेल में कुल 693 कमरे थे। सेल बहुत छोटे थे और छत के पास एक रोशनदान हुआ करता था। जेल सात हिस्सों में बंटी थी। आज़ादी के बाद दो खंड को ध्वस्त कर दिया गया। प्रधानमंत्री ने त्याग,बलिदान,शौर्य,साहस और एक-एक उन पलों को करीब से एक प्रदर्शिनी के ज़रिए देखा। 



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