परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव की कहानी

सेक्टर द्रास की टाइगर हिल पर लहूलुहान पड़ा एक सैनिक , चारों तरफ से  बरसतीं दुश्मन पाकिस्तान की गोलियां. 15 गोलियां शरीर में लग चुकी थीं , लेकिन जवान था कि  हार मानने को तैयार नहीं, शरीर साथ नहीं दे रहा था ,बारबार गिरता , फिर उठता फिर गिरता फिर उठता , एक हाथ ने काम करना बंद कर दिया लेकिन दूसरे  हाथ से बंदूक चलाता रहा. कई  पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर किया. सांस चलती रही और वो बेसुध होकर  बस लड़ता रहा लड़ता रहा......

ये किसी  फिल्म की पटकथा नहीं है, ये सच्चाई है, एक ऐसे सैनिक की जिसने अपने दम पर टाइगर हिल पर कब्जा करने का हौंसला दिखाया. ये कहानी है परमवीर चक्र विजेता योगेंद्र सिंह यादव की, जो आज भी लोगों के रूह कंपा देती है. योगेंद्र यादव कारगिल के वो हीरो हैं जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर टाइगर हिल पर भारत का झंडा लहरा था। आज कारगिल युद्ध को 20 साल हो गए है आइये जानते है उनके इस मिशन को ।

19 साल की उम्र में ट्रेनिंग के बाद ही उन्होंने जंग की तैयारी शुरू कर दी। भारतीय सेना की 18 ग्रेनेड का हिस्सा बने योगेंद्र को  सेना में भर्ती होते ही जंग के मैदान में उतरना पड़ा।घातक प्लाटून का हिस्सा बनते ही उन्हें 1999 में द्रास के टाइगर हिल को फतह करने की जिम्मेदारी मिली। जहां पाकिस्तानी सैनिक पहले से ही घात लगाए बैठे थे।

15 हजार फीट से ज्यादा की चढ़ाई और ऊपर हथियारों के साथ बैठा दुश्मन सबसे बड़ी चुनौती था। लेकिन फिर भी चढ़ाई करने का फैसला लिया। कुल 21 जवानों की टुकड़ी जैसे ही आधे रास्ते तक पहुंची दुश्मन ने ऊपर से हमला बोल दिया। जिसमें कई जवान शहीद हो गए। खड़ी चट्टान के सहारे टाइगर हिल पर पहुंचना बहुत ही मुश्किल था लेकिन फिर भी वही रास्ता लिया गया ताकि दुश्मन को आभास भी ना हो कि भारतीय सेना ऐसा साहस कर सकती है। ऊपर पहुंचते ही दुश्मन के पहले बंकर को नष्ट  कर डाला। लेकिन यहां तक पहुंचने में भी कई सैनिक शहीद जो गए।

दूसरे बंकर तक पहुंचने तक सिर्फ 7 जवान बचे थे। दुश्मन को हमारे सैनिकों की भनक लग गई और उन्होंने फायर खोल दिया। लेकिन  दुश्मन को सही लोकेशन पता नहीं चली। भारतीय सैनिक इसीलिए शांत बैठे रहे।  पाकिस्तानी सैनिकों ने समझा कि सभी भारतीय सैनिक मारे गए है।  पता लगाने के लिए जैसे ही 12 पाकिस्तानी सैनिक पास आये, योगेंद्र सिंह यादव और उनके 6 साथियों ने पोजिशन लेकर फायर खोल दिया और 11 दुश्मन सैनिकों को मार डाला 1 पाकिस्तानी सैनिक भागने में सफल रहा। भागने वाले पाकिस्तानी सैनिक ने योगेंद्र सिंह यादव और उनके साथियों की जानकारी अपने पाकिस्तानी सैनिकों को दे दी।

अब पाकिस्तान के सैनिक पूरी तैयारी के साथ आये और योगेंद्र सिंह यादव और उनके साथियों पर हमला बोल दिया। मोर्टार का एक टुकड़ा योगेंद्र सिंह की नाक पर लगा और खून नल से पानी की तरह निकलने लगा। योगेंद्र सिंह के एक साथी ने बताया कि सभी साथी मारे जा चुके है। जैसे ही बेसुध योगेंद्र यादव को उनके साथी ने खून रोकने के लिए फर्स्ट ऐड देने की कोशिश की तभी एक गोली उसके माथे को चीरती हुई निकल गई और वो वहीं शहीद हो गया। दूसरी गोली योगेंद्र सिंह यादव के कंधे पर लगी।  एक के बाद एक 11 गोलियां योगेंद्र सिंह यादव के शरीर मे लगी, ना हाथ उठा रहा था और ना पैर। पाकिस्तानी सैनिक पास आ गए और मारे गए भारतीय सैनिकों पर गोलियां मार रहे थे । योगेंद्र सिंह यादव घायल थे लेकिन मरने का नाटक करते रहे ,पाकिस्तानी सैनिक ने मरा समझ कर योगेंद्र सिंह यादव के 3 गोलियां मारी लेकिन वो हिले तक नहीं। उसके बाद 15 वीं गोली उनके सीने पर मारी और उनको छोड़ कर पाकिस्तानी सैनिक आगे बढ़ गए।

चढ़ाई के दौरान पीछे की साइड से योगेंद्र सिंह यादव के कपड़े फट गए थे जिसके बाद उन्होंने अपना पर्स सीने के पास वाली पॉकेट में रख लिया जिसमें 5 रुपए के कुछ सिक्के थे। जब 15 वीं गोली दुश्मन ने मारी तो वो 5 रुपयों के सिक्के से टकरा गई। ये चमत्कार से कम नहीं था।  3 सैनिक जो पाकिस्तान के थे अपने साथियों को बता रहे थे कि चोटी पर दुबारा से कब्जा कर लिया है। पूरी ताकत ये योगेंद्र सिंह यादव उठे और वहां पास पड़े ग्रेनेड को उठाकर उनकी तरह फेंक दिया और तीन पाकिस्तानी सैनिकों के परखच्चे उठा दिए। उसके बाद लुढ़कते लुढ़कते सभी राइफलों को पोजिशन पर लगाने लगे। जैसे ही पाकिस्तानी सैनिकों की टुकड़ी चोटी पर वापिस आई योगेंद्र सिंह यादव अलग अलग पोजिशन से फायर करने लगे।

पाकिस्तानी सैनिकों ने सोचा कि भारतीय  फ़ौज पहुंच गई है और पाकिस्तानी सैनिक पीछे हटने लगे। अब योगेंद्र सिंह यादव के सामने मुश्किल थी कि भारतीय सैनिकों को कैसे इन्फॉर्म करें क्यों कि हाथ काम नहीं कर रहा था और पैरों में कई गोलियां लगी थीं। 72 घंटे से खाने के नाम पर पारले जी बिस्किट का सिर्फ आधा पैकेट खाया था। नीचे कैसे जाएं अब ये समस्या आ रही थी अब उन्हें एक नाला दिखाई दिया और उसी नाले में लुढ़कते लुढ़कते 500 मीटर नीचे तक आये और तभी उन्हें अपने सैनिक दिखाई दिए।

चोटी पर कब्जे की कहानी उन्होंने अपने साथियों को बताई और बेसुध हो गए। उसके बाद भारतीय जवानों ने ऊपर जाकर चोटी पर कब्जा कर लिया। 15 गोलियों के बाद भी जीवित रहते हुए दुश्मनों से लड़ना अपने आप में एक मिसाल है जिसे  कभी भूला नहीं जा सकता। 15 गोलियों को खाने के बाद भी ना अपनी और ना ही अपने परिवार की सोच कर परमवीर योगेंद्र ने सिर्फ देश की सोची।

योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना के उन खास जवानों में से एक हैं, जिन्हें जीवित रहते हुए परमवीर चक्र से नवाजा गया। योगेंद्र आज भी एक जवान के तौर पर सेवा कर रहे हैं। फिलहाल वो सूबेदार मेजर के पद पर कार्यरत हैं।

 

नीरज सिंह की रिपोर्ट



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